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मैगजीन / टाइम के कवर पेज पर फिर मोदी, सवाल- क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र दोबारा उन्हें चुनेगा

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मई 2019 में टाइम के कवर पेज पर मोदी छाए


मई 2015 में टाइम के कवर पेज पर भी मिली थी  मोदी को जगह ।


मार्च 2012 में टाइम के कवर पेज पर मोदी की दिखाई तसवीर।

इससे पहले मार्च 2012 और मई 2015 के एडिशन में भी मोदी को कवर पेज पर जगह दी गई मिली थी

मैगजीन के मुताबिक - 2014 में लोगों का गुस्सा कैश करने के लिए मोदी ने नारा दिया था, "सबका साथ-सबका विकास"

मैगजीन के मुताबिक- विपक्ष कमजोर, इसलिए मोदी को दूसरा कार्यकाल मिलने के आसार ज्यादा


वॉशिंगटन. अमेरिका की प्रतिष्ठित मानी जानीी वाली  टाइम मैगजीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर एक बार अपने कवर पेज पर जगह दी है। लेकिन इस बार विवादास्पद सवाल किया है..!। पूछा है- क्या विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से मोदी को पांच साल का मौका देने को तैयार है? मैगजीन ने अपने कवर पेज पर 'इंडियाज डिवाइडर इन चीफ' शीर्षक से मोदी का फोटो लगाया है। मोदी पर आधारित यह लेख आतिश तासीर ने लिखा है।


इससे पहले टाइम ने 2014, 2015 और 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया था। 2012 फिर 2015 में अपने कवर पेज पर जगह दी थी।


मैगजीन में लिखा गया- कि नाकाम हैं, तभी ले रहे राष्ट्रवाद का सहारा !

मैगजीन का मानना है कि 2014 में लोगों को आर्थिक सुधार के बड़े-बड़े सपने दिखाने वाले ,
ब्लेक मनी लाने वाले ,
रोजगार दिलाने वाले मोदी अब इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते। अब उनका सारा जोर हर नाकामी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराकर लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना का संचार करना है। ब्लेक मनी आने पर भी भारत नही हुआ कोई विकास, भारत-पाक के बीच चल रहे विवादों का फायदा उठाने से भी मोदी जी नहीं चूक रहे हैं।


मैगजीन का दावा- 2014 में थे मसीहा, अब सिर्फ राजनेता हैं

मैगजीन का मानना है कि बेशक मोदी फिर से चुनाव जीतकर सरकार बना सकते हैं, लेकिन अब उनमें 2014 वाला करिश्मा नहीं है। तब वे मसीहा थे। आप सिर्फ एक राजनेता मात्र है ..।
लोगों की उम्मीदों के केंद्र में थे।लेकिन कु छ नही कर पाए मोदी इस कारण मोदी के प्रति युवा काफी नाराज, एक तरफ उन्हें हिंदुओं का सबसे बड़ा प्रतिनिधि माना जाता था तो दूसरी तरफ लोग उनसे साउथ कोरिया जैसे विकास की उम्मीद कर रहे थे। इससे उलट अब वे सिर्फ एक राजनीतिज्ञ हैं, जो अपने तमाम वायदों को पूरा करने में नाकाम रहा है।मोदी ने जादयातर पुरानी योजनाओ का नाम बदलकर उनकी पुलिसिटी की है


1947 के जिक्र के साथ शुरू करी थी स्टोरी

स्टोरी की शुरुआत 1947 से की गई है। बताया गया है कि विभाजन के बाद तीन करोड़ से ज्यादा मुस्लिम भारत में रह गए थे। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सेकुलरिज्म का रास्ता अपनाया। हिंदुओं के लिए कानून की पालना जहां अनिवार्य की गई, वहीं मुस्लिमों के मामले में शरियत को सर्वोपरि माना गया। मोदी के कार्यकाल से पहले तक यह व्यवस्था कायम रही, लेकिन 2014 में गुजरात जैसे सूबे के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों के गुस्से को पहचाना और 282 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस केवल 44 सीटों तक सिमट गई। यहां तक कि उसे विपक्ष का नेता बनने लायक सीटें भी नहीं मिल सकीं।


मोदी के कार्यकाल में अविश्वास का दौर शुरू हुआ

मैगजीन का कहना है कि यह जरूर है कि लोगों को एक बेहतर भारत की उम्मीद थी, लेकिन मोदी के कार्यकाल में अविश्वास का दौर शुरू हुआ। हिंदु-मुस्लिम के बीच तेजी से सौहार्द कम हुआ। गाय के नाम पर एक वर्ग विशेष को निशाना बनाया गया। सबसे अहम यह कि सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम उठाने की बजाए चुप रहना ही बेहतर समझा। मैगजीन का कहना है कि अपनी नाकामियों के लिए अक्सर कांग्रेस के पुरोधाओं को निशाना बनाने वाले मोदी जनता की नब्ज को बेहतर समझते हैं। यही वजह है कि जब भी फंसा महसूस करते हैं तो खुद को गरीब का बेटा बताने से नहीं चूकते।


मोदी ने राजनीति को अपने इर्द-गिर्द घुमाने की कोशिश की

उन्होंने राजनीति को अपने इर्द-गिर्द घुमाने की कोशिश की है। तभी उनके एक युवा नेता तेजस्वी सूर्या कहते हैं कि अगर आप मोदी के साथ नहीं हैं तो आप देश के साथ भी नहीं हैं। तीन तलाक को खत्म करके उन्होंने मुस्लिम महिलाओं का मसीहा बनने की कोशिश भी की, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में भारत को सबसे निचले पायदानों में से एक पर रखा जा रहा है। सांप्रदायिक खाई के साथ जातिवादी खाई तेजी से बढ़ती जा रही है।


नोटबंदी की मार नहीं झेल पाया है देश नो5बन्दी के बाद से रुपए की क़ीमत काफी गिरी जिसे देश की सांन समाजा जाता था लोग सगुन में एक रुपया लेना शुभ समजा जाता था लेनकि 2019 हो गया सब कुछ खत्म

टाइम ने लिखा है कि मोदी ने लगभग हर क्षेत्र में अपने मन मुताबिक फैसले लिए। हिंदुत्व के प्रबल समर्थक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड में शामिल किया। उनके बारे में कोलंबिया के अर्थशास्त्री ने कहा था- अगर वह अर्थशास्त्री हैं तो मैं भरतनाट्यम डांसर। मैगजीन का कहना है कि गुरुमूर्ति ने ही कालेधन से लड़ने के लिए नोटबंदी का सुझाव दिया था। इसकी मार से भारत आज भी नही

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